“पासवर्ड से बदली बंदूक़ों की तक़दीर, सिस्टम गोलियों से छलनी”

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शस्त्र लाइसेंस का नया जमाना
अब हथियार लेने के लिए न निशानेबाज़ी सीखनी पड़ेगी, न लाइनों में लगना पड़ेगा, बस सही पासवर्ड और सही “रेट कार्ड” चाहिए।

ये तो कुछ ऐसा हुआ मानो शस्त्र लाइसेंस का “लकी ड्रा” निकल रहा हो
“नंबर बदलो, किस्मत बदलो!”

जिला प्रशासन की “सख्ती” के बाद भी पासवर्ड ऐसे बंट रहे थे जैसे शादी में मिठाई।
अब सोचिए, जहां एक क्लिक में लाइसेंस नंबर बदलकर हथियार किसी और के नाम हो जाएं, वहां कानून व्यवस्था कितनी “सुरक्षित” होगी?

ऊपर से “एक नंबर बदलो – डेढ़ लाख पाओ” ऑफर तो जैसे सरकारी सेल चल रही हो।
और सबसे बड़ा मज़ा ये कि जिन पर भरोसा करके बंदूकें जनता को दी जाती हैं, वही सिस्टम की गोली चला रहे हैं।

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