हरियाली का व्यवसाय: राजनीति और शहरी विकास का मज़ेदार सच

शहर में हरियाली बढ़ाने का आइडिया सुनकर अधिकारी परेशान हो जाते हैं। उनके हिसाब से बिल्डिंग, टेंडर और मार्केट ही “सही विकास” है। लेकिन माननीय उन्हें समझाते हैं कि हरियाली भी एक व्यवसाय बन सकती है—जिसमें जनता खुश, कार्यकर्ता खुश, और अधिकारी भी खुश रहें।
बिल्डिंग बनाम हरियाली: गणित आसान नहीं
अधिकारी:”सर! अगर पेड़ पौधे लगाएंगे तो हमारा क्या होगा? हमारा विकास कैसे होगा?”
माननीय:”पेड़ से शहर में हरियाली बढ़ेगी → बारिश अच्छी होगी → फ़सल अच्छी होगी → बाज़ार गुलज़ार होगा। सबका विकास होगा।”
अधिकारी का तर्क:”खाली जगह में बिल्डिंग बनेगी, टेंडर भरेंगे, मार्केट खुलेगा, रोज़गार मिलेगा, दो पैसे हम भी कमाएंगे।”
माननीय (मुस्कुराते हुए):”कभी-कभी आसान रास्ता छोड़कर कठिन रास्ता भी अपनाना चाहिए।”
हरियाली का “व्यवसाय मॉडल”
- गड्ढे खोदो, टेंडर करो – खाली प्लाट में गड्ढे खोदने का टेंडर।
- पौधे मंगाओ, रिजेक्ट करो, फिर टेंडर करो – हर पौधे में भी व्यवसाय।
- जाली और फैंसिंग लगाओ – सुरक्षा के लिए अलग टेंडर।
- पानी देना है? – नगर निगम के टैंकर का टेंडर।
दो साल बाद जगह हरी-भरी, गार्डन बनेगा, चौपाटी खुलेगी, म्यूजिकल फाउंटेन लगेगा। जनता खुश, कार्यकर्ता खुश, अधिकारी भी खुश।
शहर का विकास सिर्फ बिल्डिंग बनाने से नहीं, बल्कि हरियाली में व्यवसाय बनाने से भी हो सकता है। टेंडर, सुरक्षा, पानी, मेंटेनेंस—सबमें “व्यापार की खुशबू” आती है। और सबसे मज़ेदार बात: लंबी अवधि में फायदा सबको मिलता है।
