ADJ के फर्जी हस्ताक्षर मामले में 25 साल बाद फैसला,: पूर्व कोर्ट मोहर्रिर को 3 साल की जेल

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आगरा की अदालत ने 1999 के जालसाजी प्रकरण में फिरोजाबाद निवासी तत्कालीन कोर्ट मोहर्रिर जुगल किशोर को दोषी पाया। खुद को बचाने के लिए एडीजे के नकली दस्तखत कर फर्जी पत्र तैयार किया था।

आगरा, आगरा की एक अदालत ने 25 साल पुराने जालसाजी के एक मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अचल प्रताप सिंह की अदालत ने शुक्रवार को तत्कालीन कोर्ट मोहर्रिर जुगल किशोर को तीन वर्ष के कारावास और तीन हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 468 (धोखाधड़ी के इरादे से जालसाजी) के तहत दोषी पाया गया, जबकि धारा 420 (धोखाधड़ी) के आरोप से मुक्त कर दिया गया।

क्या था पूरा मामला?

यह मामला वर्ष 1999 का है, जब तत्कालीन सीसीओ हरीपर्वत, अनंत देव ने थाना न्यू आगरा में एक रिपोर्ट दर्ज कराई थी। रिपोर्ट के अनुसार, उस समय एडीजे रामनाथ की अदालत में तैनात कोर्ट मोहर्रिर जुगल किशोर (निवासी ग्राम रूधऊ, थाना नारखी, जिला फिरोजाबाद) और आरक्षी कमलेश कुमार जिला कारागार से पेशी पर लाए गए बंदियों के वारंट समय पर न्यायालय में प्रस्तुत नहीं कर रहे थे। इस लापरवाही पर तत्कालीन एडीजे ने जांच के आदेश दिए।

कैसे हुआ फर्जीवाड़े का खुलासा?

जांच से बचने के लिए कोर्ट मोहर्रिर जुगल किशोर ने एक शातिर योजना बनाई। उसने खुद एडीजे रामनाथ के फर्जी हस्ताक्षर वाला एक पत्र तैयार कर लिया। इस पत्र में यह लिखा गया था कि कर्मचारियों की कोई लापरवाही नहीं है, ताकि वह खुद को और अपने साथी को बचा सके। जब यह पत्र अधिकारियों के सामने आया और एडीजे से हस्ताक्षर की पुष्टि करने के लिए कहा गया, तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया कि ये हस्ताक्षर उनके नहीं हैं। इसी के साथ इस फर्जीवाड़े का पर्दाफाश हो गया और जुगल किशोर के खिलाफ मामला दर्ज किया गया।

अदालत की कार्यवाही और फैसला

मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने मजबूती से अपने तर्क रखे। मामले में वादी अनंत देव, स्टेनो बच्चू सिंह, पेशकार जितेंद्र कुमार, एसआई चरन सिंह और कर्मचारी छुट्ठन सिंह की गवाही बेहद अहम साबित हुई। वहीं, बचाव पक्ष ने दलील दी कि आरोपी जुगल किशोर अब अत्यंत बीमार है, उसे किडनी की गंभीर बीमारी है और उसकी नियमित डायलिसिस होती है। साथ ही उसका कोई पुराना आपराधिक इतिहास भी नहीं है। दोनों पक्षों को सुनने और सबूतों के आधार पर अदालत ने जुगल किशोर को जालसाजी का दोषी पाते हुए तीन साल की कैद और ₹3000 जुर्माने की सजा सुनाई।


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