“सट्टा बाजार के शोले : गद्दी पर बैठा पेठानन्द और रोनी बिंदी”

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पेठा और सट्टा—आगरा की पहचान जैसे अब दो तरफा हो गई है।
एक तरफ़ “पेठा नन्द”, जिसकी पहचान मीठाई से नहीं, बल्कि मीठे-मीठे झांसे से है।
दूसरी ओर “रोनी बिंदी”, जो हर खेल को “ऑल इन” मानता है।

गब्बर का नाम आते ही याद आता है—“अरे ओ सांभा, कितने आदमी थे?”
पर यहां सवाल उल्टा है—“कितने बुक चालू हैं?”

प्रेम चोपडा के रिश्तेदार सरीखे राजीव खोपड़ा, जेल की हवा ऐसे खाते हैं जैसे कोई एयर कंडीशन रूम में ठंडी सांसें ले रहा हो।
और प्रेम चोपड़ा का नाम जुड़ते ही कहानी में सिनेमाई तड़का लग जाता है।

सट्टे की गद्दी पर अब बैठ चुके हैं पेठानंद और रोनी बिंदी—बाकी दोनों तो बस उनके लिए डायलॉग डिलीवरी वाले जूनियर आर्टिस्ट हैं।
एक्शन, कट और क्लाइमेक्स—सबका स्क्रिप्ट इन्हीं के पास।
फर्क बस इतना है कि यहां टिकट ब्लैक में नहीं बिकते, बल्कि नंबर ब्लैक में सेट होते हैं।

सिनेमाई अंदाज़ में कहें तो—
“अरे ओ पेठानंद, रोनी… गद्दी पर बैठकर सोच लेना, क्योंकि सट्टे की दुनिया में दोस्ती नहीं, बस नंबर चलते हैं।”

यानी अब आगरा के सट्टा बाजार का नया पोस्टर है –
पेठा, बिंदी, गब्बर और खोपड़ा – द अल्टीमेट सट्टेबाजी शो”

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