कंप्यूटर ऑपरेटर: कुर्सी पे बैठा ‘बॉस’, सिस्टम से बड़ा सिस्टम”
सुना था ऋषि तो मोहमाया से दूर रहते थे, जंगल में वास करते थे, तपस्या करते थे।लेकिन ये कंप्यूटर ऋषि तो 9 साल से एक ही कुर्सी पर ध्यानमग्न हैं – नियम-कानून, स्थानांतरण, आदेश सब इनके लिए माया जाल हैं।दफ्तर में प्रवेश करते ही ऐसा तेज फैलता है कि अफसर खुद को अनुचर समझने लगते हैं।फाइलें खुद-ब-खुद खुलती हैं, आदेश बिना पद के जारी होते हैं –क्योंकि ये कोई सामान्य कर्मचारी नहीं, “सिस्टम के सिद्ध साधक” हैं।इनके स्पर्श से कंप्यूटर भी बोल पड़ेi
“हे देव, अब मुझे भी आराम चाहिए…”जांच बैठी, लोग बोले –
“ऋषि तो ब्रह्मचारी होता है, ये तो ब्रह्मलेटरधारी निकले!”
आगरा का शिक्षा विभाग भी कमाल का है, और उसमें बैठा कंप्यूटर ऑपरेटर तो उससे भी कमाल का। पिछले 9 साल से आउटसोर्सिंग से आए जनाब ने ऐसा कब्जा जमाया कि ऑफिस के असली अफसर भी पूछते थे – “सर, ये फाइल लगानी है या टालनी है?”
शिकायतें हुईं तो अफसर बोले, “हमें तो लगा यही अधिकारी हैं, क्योंकि साहब के पास सब कुछ था – मुहर, लेटरहेड, और हाँ… स्वघोषित अधिकार भी!” विभाग का लेटरहेड देखकर लोग सोचते थे कि शायद यह आदमी विभाग का लेटर हैड ही है!
विभाग ने जब दस्तावेज मांगे, तो महोदय गायब! पैन कार्ड नहीं, डिटेल नहीं, लेकिन हर पत्र में दस्तखत जरूर। जैसे सरकारी नहीं, कोई फिल्मी स्क्रिप्ट लिख रहे हों – “प्रस्तावित किया जाता है…”
जब नगर मजिस्ट्रेट ने जांच बैठाई तो पता चला कि भाईसाहब ने अपना ऑफिसीयल कुर्ता सिलवा लिया था, और ‘कंप्यूटर ऑपरेटर’ से ‘कंप्यूटर सम्राट’ बन चुके थे। इतना ही नहीं, आरोप लगते ही वो “साक्ष्य लाओ, गवाही लाओ” की मुद्रा में आ गए – जैसे अदालत वही चला रहे हों।
पर विभाग ने भी ठान ली – “अब तो सिस्टम को रीस्टार्ट करना ही पड़ेगा!” और आखिरकार, कंप्यूटर ऑपरेटर का “सिस्टम हैंग” कर दिया गया। लेकिन हैंग करने वाले भूल गए उनसे बड़ा सिस्टम इस कंप्यूटर बाबू का है
जहाँ शिक्षा विभाग की कुर्सियाँ राहत की साँस लेने की सोच रही थी । एक कुर्सी ने तो कहा भी था , “अब शायद असली अधिकारी हम पर बैठेंगे, नहीं तो ये तो पेन से पहले लेटर साइन कर देता था!”लेकिन सपना सपना रह गया बाबू वहीँ टिका है हाँ जिन्होंने शिकायत का समर्थन किया था उनके गले जरूर सूखने लगे है