बीस मुकदमे, 28 माफिया जेल भेजे — नरेश मोहन की जुबानी
मानवेंद्र मलहोत्रा की सहायक औषधि आयुक्त नरेश मोहन से खास बातचीत — 26 अगस्त 2025
नकली और नशीली दवाइयों के सौदागरों के खिलाफ चल रही कार्रवाई में सहायक औषधि आयुक्त नरेश मोहन एक ऐसे अफसर हैं जिन्होंने अपने सख्त रवैये और ईमानदारी से पूरे नेटवर्क को हिला दिया। कोविड काल में बतौर औषधि निरीक्षक उन्होंने आगरा में लगातार छापेमारियाँ कीं — 20 से ज्यादा मुकदमे दर्ज, करीब ₹18 करोड़ मूल्य की अवैध दवाइयाँ जब्त और 28 से अधिक माफिया जेल भेजे गए। प्रस्तुत हैं उनसे हुई खास बातचीत के प्रमुख अंश।
सवाल: नकली और नशीली दवाइयों के नेटवर्क पर कार्रवाई का आइडिया आपको कहां से मिला?
नरेश मोहन: जब मैं 2020 में आगरा में औषधि निरीक्षक के पद पर तैनात हुआ, तभी से मुझे अहसास हो गया था कि यहां दवाओं का अवैध कारोबार गहराई तक फैला है। कारोबारी, एजेंट, ब्रोकर और कैरियर—सभी की अपनी भूमिकाएं थीं। पॉश कॉलोनियों से संकरी गलियों तक गोदाम थे। मैंने ठान लिया कि इस नेटवर्क को तोड़ना होगा।
सवाल: आपके कार्यकाल के दौरान कौन-कौन सी बड़ी कार्रवाइयाँ हुईं?
नरेश मोहन: कई बड़ी छापेमारियाँ यादगार रहीं। कुछ प्रमुख घटनाएँ:
- 19 दिसंबर 2020 — पंकज गुप्ता को ₹3.24 लाख मूल्य की अवैध दवाओं के साथ पकड़ा गया।
- 20 दिसंबर 2020 — सूर्यकांत गुप्ता को ₹48.29 लाख की दवाओं के साथ जेल भेजा गया।
- 21 दिसंबर 2020 — बल्केश्वर से भ्रूण हत्या में इस्तेमाल होने वाली दवाइयाँ (सचोटत: ₹71 लाख से अधिक) जब्त।
- जनवरी 2021 — प्रदीप और धीरज राजौरा बंधुओं का नेटवर्क तोड़ा गया; अकेले इस छापे में करीब ₹7 करोड़ की दवाइयाँ जब्त हुईं।
इन कार्रवाइयों के दौरान विरोध और दबाव भी झेला गया, पर हर कार्रवाई कानून के दायरे में रखकर की गई।
सवाल: छापेमारी के दौरान आपको रिश्वत के ऑफर भी मिले?
नरेश मोहन: हाँ, कई बार करोड़ों की रिश्वत ऑफर की गई — हाल ही में हिमांशु अग्रवाल की ओर से भी कोशिश हुई थी। पर मैं मानता हूँ कि नकली दवाएँ केवल क़ानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि इंसानियत का भी अपराध हैं। इसलिए किसी भी लालच ने मुझे डिगाया नहीं।
सवाल: इतनी बड़ी कार्रवाई में आपकी सबसे बड़ी चुनौती क्या रही?
नरेश मोहन: सबसे कठिन काम था नेटवर्क के असली सरगनाओं तक पहुँचना। छोटे कारोबारी पकड़े जाते हैं, पर असल सरगना छिप जाते हैं। इसके लिए लगातार निगरानी, खुफिया इनपुट और टीमवर्क जरूरी था। धमकियाँ मिलीं, दबाव बना, पर हमने पीछे नहीं हटे।
सवाल: आप 28 से ज्यादा लोगों को जेल भेज चुके हैं — आपको कैसा महसूस होता है?
नरेश मोहन: मुझे गर्व है कि हमने समय रहते कई ज़िंदगियाँ बचाईं। नकली और नशीली दवाओं का कारोबार समाज के लिए कैंसर की तरह है — अगर एक भी बच्चा या परिवार बचा सके तो वह बड़ी उपलब्धि है।
सवाल: भविष्य के लिए आपकी प्राथमिकताएँ क्या होंगी?
नरेश मोहन: मेरा मकसद साफ है — जहां भी तैनाती हो, दवाओं का कारोबार कानून के दायरे में रहे। इस अवैध नेटवर्क को पूरी तरह तोड़ना ही असली सफलता होगी। अभी बहुत काम बाकी है।
नरेश मोहन जैसे अफसरों की सख्ती और ईमानदारी ही वजह है कि नकली दवाओं के माफिया आज सलाखों के पीछे हैं। उन्होंने साबित कर दिया कि मजबूत इरादे और सही प्रक्रिया से किसी भी नेटवर्क को ब्लॉक किया जा सकता है।