फिजियोथेरेपिस्ट को बड़ा झटका, अब नहीं लिख पाएंगे ‘डॉ.
“फिजियोथेरेपिस्ट सिर्फ थेरेपी दे सकते हैं, दवाइयाँ लिखना उनके अधिकार में नहीं। मंत्रालय का आदेश मरीजों की सुरक्षा और चिकित्सा जगत की साख के लिए बिल्कुल सही है।”
— डॉ. संजय चतुर्वेदी, आगरा
नई दिल्ली। स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि फिजियोथेरेपिस्ट अपने नाम के आगे अब “डॉ.” (Doctor) नहीं लिख सकते। सरकार का कहना है कि फिजियोथेरेपिस्ट मेडिकल डॉक्टर नहीं होते और इस तरह का प्रयोग मरीजों और आम जनता को गुमराह करता है।
संगठनों की आपत्ति
भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) और इंडियन एसोसिएशन ऑफ फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन (IAPMR) ने इस मामले में शिकायत दर्ज की थी। संगठनों का कहना है कि फिजियोथेरेपिस्ट केवल फिजियोथेरेपी की पढ़ाई करते हैं और उन्हें बीमारियों की पहचान या इलाज की ट्रेनिंग नहीं होती। ऐसे में ‘डॉ.’ का प्रयोग भ्रम पैदा करता है।
अदालतों का हवाला
मंत्रालय ने कई पुराने आदेशों का जिक्र किया। पटना हाईकोर्ट (2003), तमिलनाडु मेडिकल काउंसिल (2016), बेंगलुरु कोर्ट (2020) और मद्रास हाईकोर्ट (2022)—सभी ने साफ कहा है कि फिजियोथेरेपिस्ट डॉक्टर नहीं हैं और वे इस उपाधि का इस्तेमाल नहीं कर सकते।
सम्मानजनक उपाधि पर विचार
मंत्रालय ने कहा है कि फिजियोथेरेपी ग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट छात्रों के लिए कोई सम्मानजनक उपाधि तय की जा सकती है, लेकिन उसमें किसी भी तरह की गलतफहमी या भ्रम की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। “डॉ.” का इस्तेमाल किसी भी हालत में नहीं होगा।
आगरा के विशेषज्ञ का समर्थन
आगरा के प्रतिष्ठित चिकित्सक डॉ. संजय चतुर्वेदी ने मंत्रालय के फैसले की जोरदार सराहना की है। उन्होंने कहा, “यह बहुत सही आदेश है। फिजियोथेरेपिस्ट का असली काम मरीजों को थेरेपी देना है, लेकिन पिछले कुछ समय से देखा गया है कि वे अपने नाम के आगे ‘डॉ.’ लगाकर लोगों को भ्रमित कर रहे थे। कई जगह तो फिजियोथेरेपिस्ट मरीजों को दवाइयाँ लिखकर देने लगे थे, जबकि यह पूरी तरह से गैरकानूनी और खतरनाक है। अब इस पर रोक लगने से मरीज सुरक्षित रहेंगे और असली डॉक्टर और फिजियोथेरेपिस्ट की भूमिका स्पष्ट हो जाएगी। यह कदम चिकित्सा जगत की विश्वसनीयता बढ़ाएगा।”